
ज़िन्दगी की रफ़्तार में बहता जा रहा हूँ
कोई तो बताओ मैं कहाँ जा रहा हूँ
धुवा सा छा रहा रास्ते धुंधले नज़र आते हैं
हर पल सोचते हैं हम ज़िन्दगी से क्या चाहते हैं
पावों में जान नहीं आखों में नींद सी छाई है
माँ के गोद में सर रखकर सोने की इक्शा आई है
याद करता हूँ वो दिन जब नकारा बन के सोता था
दर दर ठोकरें खाता था लोगों के ताने सुनता था
मेहनत किस्मत के बल पर मैंने तरक्की पाई है
सुख को पाने के चक्कर में जिंदगी लगाई है
पर सुख तो मैं नही पाया तन्हाई गले लगाई है
माँ के गोद में सर रखकर सोने की इक्शा आई है
माँ के गोद में सर रखकर सोने की इक्शा आई है
3 comments:
MASTER PIECE!! :)
Really touching...i m feeling the same now a dayz...
behtereeeeeeeeeeen!!....
really touched my heart.
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