Saturday, November 15, 2008

ज़िन्दगी


ज़िन्दगी की रफ़्तार में बहता जा रहा हूँ

कोई तो बताओ मैं कहाँ जा रहा हूँ

धुवा सा छा रहा रास्ते धुंधले नज़र आते हैं

हर पल सोचते हैं हम ज़िन्दगी से क्या चाहते हैं

पावों में जान नहीं आखों में नींद सी छाई है

माँ के गोद में सर रखकर सोने की इक्शा आई
है



याद करता हूँ वो दिन जब नकारा बन के सोता था

दर दर ठोकरें खाता था लोगों के ताने सुनता था

मेहनत किस्मत के बल पर मैंने तरक्की पाई है

सुख को पाने के चक्कर में जिंदगी लगाई है

पर सुख तो मैं नही पाया तन्हाई गले लगाई है

माँ के गोद में सर रखकर सोने की इक्शा आई है
माँ के गोद में सर रखकर सोने की इक्शा आई है

3 comments:

Akanshu said...

MASTER PIECE!! :)

monali said...

Really touching...i m feeling the same now a dayz...

Alok said...

behtereeeeeeeeeeen!!....
really touched my heart.